लखनऊ के इंदिरानगर के सेक्टर 18 स्थित रिटायर्ड आईपीएस अफसर डीसी पांडेय के घर में शनिवार रात आग लग गई। आग की वजह से डीसी पांडेय, उनकी पत्नी अरुणा पांडेय व दिव्यांग बेटा शशांक पांडेय घर में फंस गए। सूचना पर पहुंची फायर ब्रिगेड व पुलिस टीम ने परिवार को बाहर निकाला। डीसी पांडेय को लोहिया संस्थान ले जाया गया, जहां उनकी इलाज के दौरान मौत हो गई। जबकि पत्नी अरुणा व छोटे बेटे शशांक का निजी अस्पताल में इलाज चल रहा है। प्रभारी निरीक्षक गाजीपुर मनोज कुमार मिश्र के मुताबिक एसी में शॉर्ट सर्किट की वजह से पहली मंजिल के आगे के कमरे में आग लगी। परिवार पहली मंजिल के पीछे वाले कमरों में था। जीने का रास्ता आगे वाले कमरे से ही है। निकलने के रास्ते पर आग होने के कारण परिवार बाहर नहीं निकल सका।

हड़बड़ाहट में कमरे की खिड़की भी नहीं खोल पाए
इंस्पेक्टर गाजीपुर मनोज कुमार मिश्र ने बताया कि जिस कमरे में पूर्व आईजी दिनेश चंद्र पांडेय, उनकी पत्नी व बेटा बेसुध पड़े थे। उसकी एक खिड़की छोड़कर सभी बंद थीं। हड़बड़ाहट में वह कमरे की खिड़कियां भी नहीं खोल पाए।

खिड़कियां खोल दी गई होतीं तो कमरे में धुआं न भरता। इसके अलावा पीछे की ओर बालकनी के रास्ते में लगे चैनल पर ताला था। चैनल खोलकर तीनों लोग बालकनी में आ गए होते तो भी इतना बड़ा हादसा न होता। चैनल की चाबी ड्राडंग रूम में पड़ी थी।

दो बार दी थी मौत को मात
रूढ़की से आए उनके भाई सिंचाई विभाग से सेवानिवृत्त इंजीनियर अवधेश चंद्र पांडेय ने बताया कि भैया दिनेश चंद्र दो बार मौत को मात दे चुके थे, लेकिन इस बार हार गए। 1975 में इलाहाबाद ट्रेन से पीसीएस का इंटरव्यू देने जा रहे थे। ट्रेन फतेहपुर से प्रयागराज की ओर बढ़ी थी कि अचानक आग लग गई।

अग्निकांड में तीस से अधिक लोगों की जान चली गई थी, जबकि भैया हादसे में बाल-बाल बच गए थे। इसके बाद 41वीं बटालियन गाजियाबाद में कमांडेंट पीएससी के पद पर तैनाती के दौरान ओखला बैराज में बोट का ट्रायल चल रहा था।
इस दौरान नाव अचानक डूब गई। हादसे में पांच सिपाहियों की मौत हो गई थी, पर भैया की जान बच गई थी। लेकिन इस बार होनी को कुछ और ही मंजूर था।