नई दिल्ली । पिछले 20 वर्षों से चीन सीमा के पास भारत द्वारा बनाई जा रही सुबनसिरी लोअर हाइड्रोइलेक्ट्रिक परियोजना का काम पूरा हो गया है। ऊर्जा परिवर्तन में भारत का यह बड़ा कदम माना जा रहा है। सरकारी कंपनी नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड जुलाई से इसकी पहली यूनिट का परीक्षण शुरू करेगी और इस वर्ष दिसंबर से इसे ग्रिड से जोड़ना शुरू किया जाएगा। एनएचपीसी के वित्त निदेशक राजेंद्र प्रसाद गोयल ने मीडिया को बताया कि पहली इकाई इस साल के अंत तक चालू हो जाएगी। इस बीच दिसंबर 2024 तक सभी आठ इकाइयां चालू हो जाएंगी।
उल्लेखनीय है कि 2-गीगावाट परियोजना 2003 में शुरू हुई थी, लेकिन विरोध और मुकदमों के कारण इसमें देरी हुई। भारत में विद्युत ग्रिड को संतुलित करने के लिए जलविद्युत महत्वपूर्ण है, क्योंकि सौर और पवन ऊर्जा का रुक-रुक कर उत्पादन बढ़ता है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार परियोजना की कीमत मूल अनुमान से तीन गुना बढ़कर 212.5 अरब रुपये हो गई। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने आठ साल से अधिक के निलंबन के बाद 2019 में निर्माण कार्य को फिर से शुरू करने की अनुमति दी थी। गोयल ने कहा कि हमें जलविद्युत परियोजना का निर्माण शुरू करने से पहले 40 से ज्यादा विभिन्न विभागों व मंत्रालयों से मंजूरी लेनी होती है, इसके हर स्तर की जांच होती है, जिसकी वजह से यह परियोजनाएं लंबे समय तक अटकी रहती हैं।
उल्लेखनीय है कि असम और अरुणाचल प्रदेश के बीच फैली इस परियोजना से देश को कुल 2,000 मेगावाट बिजली मिलेगी। इसकी कुल 8 इकाइयां हैं, जिनमें प्रत्येक की क्षमता 250 मेगावाट है। एनएचपीसी के वित्त निदेशक राजेंद्र प्रसाद गोयल ने कहा कि योजना की सभी आठ यूनिट्स को दिसंबर 2024 तक संचालन योग्य बना दिया जाएगा।
रिपोर्टों के अनुसार बड़े बांध भारत में स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने का एक तरीका हैं, खासकर चीन और पाकिस्तान की सीमाओं में जहां आमतौर पर स्थिति तनावपूर्ण होती है। कथित तौर पर हाइड्रोपावर को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार ने बड़े बांधों को स्वच्छ ऊर्जा का दर्जा दिया है। रिपोर्टों का कहना है कि सरकार ने सिविल निर्माण और बाढ़ नियंत्रण कार्य पर कुछ मामलों के लिए बजटीय सहायता पर सहमति व्यक्त की है।